आर्षविष्णुसहस्त्रनामार्थ

By DARSHAN YOG DHARMARTH TRUST (ROJAD)

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Format Hardcopy
Author स्वामी ध्रुवदेव परिव्राजक
Editor / Translator Name स्वामी ध्रुवदेव परिव्राजक
Writer Name स्वामी ध्रुवदेव परिव्राजक
Publisher Name DARSHAN YOG DHARMARTH TRUST (ROJAD)
Language Hindi
No. of Pages 98
ISBN 978-81-937819-3-7
Size 14 X 22

Description

इस नवीन पुस्तक में परमपिता परमात्मा के एक हजार से भी अधिक नामों की अर्थ सहित सूची प्रस्तुत की गई है।
आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद जी ने अपने सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रंथों में लिखा है कि ऋग्वेदादि चार मंत्र संहिताओं में एक ही ईश्वर की सत्ता का प्रतिपादन किया गया है, जिसका मुख्य नाम ओम् (ओ३म्) है; परंतु ईश्वर के अनंत गुण, कर्म, स्वभाव होने से उसे अनेकानेक नामों से पुकारा जाता है। इसीलिए वेदादिक सत्य शास्त्रों में ईश्वर के अनेक नामों का उल्लेख पाया जाता है।
स्वामी दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के सौ नामों की संक्षिप्त व्याख्या व्युत्पत्तियां या धात्वर्थ सहित लिखी हैं। स्वामी दयानन्द ने प्रतिपादित किया है कि इन विभिन्न नामों से एक ही परमात्मा की स्तुति की गई है और ईश्वर के ये सभी नाम सार्थक हैं, जिनका संबंध ईश्वर के वास्तविक गुण, कर्म, स्वभाव से है।
इस आर्षविष्णुसहस्रनामार्थ नामक नवीन पुस्तक में विद्वान् लेखक श्री स्वामी ध्रुवदेव जी परिव्राजक ने स्वामी दयानंद के ग्रंथों का - विशेष रुप से उनके ऋग्वेद एवं यजुर्वेद भाष्य का - आधार लेकर परमात्मा के 1029 नामों की क्रमबद्ध सूची लिखी है और प्रत्येक नाम का प्रायः 1-2 पंक्ति में - संक्षिप्त अर्थ स्वामी दयानंद के ग्रंथों के संदर्भ सहित प्रस्तुत किया है। ग्रंथ के अंत में इन सभी नामों को संस्कृत तथा हिंदी में वर्ण अनुसार क्रमबद्ध भी किए गए हैं, जिससे पाठक को नाम ढूंढने में तथा सभी नामों का एक साथ पाठ करने में विशेष सुविधा प्राप्त होगी।
ध्यातव्य है कि भारतीय पौराणिक संप्रदायों में मूर्तिपूजा और अवतारवाद की वेद विरुद्ध अवधारणा बहुत दृढ़ीभूत हो चुकी है, और पौराणिक जगत् में विष्णुसहस्रनामक स्तोत्र की बहुत महिमा है, जिसमें तथाकथित विष्णु के अवतार की विविध नामों से संस्तुति की जाती है। परंतु स्वामी ध्रुवदेव जी रचित इस नवीन ग्रंथ में संगृहीत परमात्मा के सभी नाम सार्थक - संगत, वेदोक्त एवं यथार्थ होने से इस पुस्तक को पढ़कर पाठक को ईश्वर के वास्तविक स्वरूप का - गुण, कर्म, स्वभाव का - परिचय सुगमता से प्राप्त होगा; और वेदों में कैसे-कैसे सार्थक नामों से ईश्वर की स्तुति की गई है इसका भी पता चलता है। इससे आस्तिक्य भाव प्रबल होगा और ईश्वर में रुचि बढ़ेगी।

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